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माँ की याद में जलाशय...

 माँ की याद में जलाशय...

#जनासागर

पुराणों की माने तो पितृ, पूर्वज अपने वंशजों से यह कामना करते हैं कि कोई होगा उनका वंशवर्ती जो जलदान करेगा। मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में तो यह कामना गाथा रूप में निबद्ध है...।



मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने जलदान हेतु हमेशा- हमेशा के लिए उपयोगी जलाशय बनाने का संकल्प किया और आजीवन सपरिवार जलाशयों के निर्माण में जुटे रहे। उनके आसपास वालों को डर था कि मुगल जलस्रोतों के निर्माण का विरोध करेंगे और राजसिंह गंगा आराधक भगीरथ की तरह इस बात पर दृढ थे कि अरावली की नदियां जलालय हो जाये और पथिक तो क्या परिंदों तक को मीठा पानी सुलभ हो। (राजप्रशस्ति)

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उदयपुर से कुछ ऊंचाई पर 8 किलोमीटर बड़ी नामक गांव में जलाशय निर्माण की संभावना आई तो महाराणा राजसिंह ने काम शुरू करवाया। श्रद्धास्पद अपनी माँ जनादे के नाम पर इसका निर्माण करवाया था, जिसकी प्रशस्ति में लिखा है :


बड़ी ग्रामस्य निकटे तत्कासारस्य राजत:।

जनासागर इत्येवं प्रसिद्धस्समाजयत।। २२।।


जनादे मेड़ता (नागौर) के राठौड़ राजा राजसिंह की पुत्री थी और भक्तिमती मीरांबाई के कुल की थी। उनका पहले नाम कर्मेति था और महाराणा जगतसिंह से विवाह के बाद जनादे कहलाई। राज प्रशस्ति, अमर काव्य, जयसमंद की प्रशस्ति में जनादे का उल्लेख है। बड़ी के तालाब की प्रशस्ति के अनुवाद पर ज्ञात हुआ कि इस जलाशय को उसमें "जनासागर" कहा गया है। इसकी नींव में सीसा भरा गया। इस पर तब 26,1000 रुपये खर्च हुए। वर्ष 1721 की मार्गशीर्ष कृष्णा 10 को नींव की खुदाई शुरू हुई, 1725 में वैशाख शुक्ल 3 को प्रतिष्ठा चांदी के तुलादान के साथ की गई।


इस 42 श्लोकों वाली प्रशस्ति में मेवाड़ राजवंश के संक्षिप्त इतिहास सहित उस काल में जलाशय बनाने की विधि के पारिभाषिक शब्द भी आये हैं। इसको तैलंग कृष्ण भट्ट के पुत्र लक्ष्मी नाथ और भास्कर भट्ट ने लिखा। जलाशय का सूत्रधार नाथू भंगोरा था जो सगराम का पुत्र था। प्रारंभ में सूत्रधार किसना पुत्र जसा ने सेवाएं दी। अनेक सहायक लगे। देखरेख राजकुमार जयसिंह और भीमसिंह की रही :


महाराजाधिराज महाराणा श्री राज सिंह विजय राज्ये तालाव जना सागर रो काम कराव्यो। कुंवर श्री जेसिंहजी भीमसिंहजी कुंवरपद भुक्तव्यं। गजधर सूत्रधार किसना सुत जसा। ( मेरी संपादित : भारतीय ऐतिहासिक प्रशस्ति परम्परा एवं अभिलेख)


जनादे को अपने पुत्र और पौत्रों का यह अनूठा, अविस्मरणीय और अमर जलदान हुआ। बड़ी में बना बड़ा दान! बहुत सुदृढ़ और पहाड़ों के बीच सुंदर सेतु की योजना वाला। छतरी, तोरण के साथ उत्सर्ग की योजना वाला। यह निर्माण के बाद से पड़े कई अकालों के दौर में उदयपुर के लिए बहुत मददगार सिद्ध हुआ है।


इन दिनों जबकि बारिश का दौर है, जनासागर का सौंदर्य निखरता जा रहा है।

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