विनम्रता जब उभरती है, अहम लुप्त होता है....तो महान व्यक्तित्व उभरता है!!
2 दिन पूर्व ट्विटर पर इंफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति की सब्जियां बेचते हुए फोटो वायरल हो गई। बाद में पड़ताल हुई तो पता चला कि वास्तव में फोटो सुधा मूर्ति की ही है, जो 2480 करोड रुपए की मालकिन है।
"किंतु वे सब्जीयां क्यों बेच रही हैं?"
तो उसका उत्तर मिला "वह राघवेंद्र मठ (मंदिर) में प्रति वर्ष 3 दिन के लिए आती हैं,चुपचाप। वहां पर फल सब्जी काटना, व्यवस्थित करना, रसोई के काम में लगना, यह सब काम करती हैं, स्वयं अपने हाथ से।
जब उनसे पूछा गया "यह क्या है, आप क्यों ऐसा करती हैं?" तो उन्होंने कहा "यह अपने अहम को मारने की एक विधि है, जो मैंने पंजाब में गुरुद्वारे में होने वाली कार सेवा को देखकर सीखी है। पैसों का दान देना भी अच्छी बात है,किंतु स्वयं शारीरिक श्रम करना व सामान्य लोगों के साथ,सामान्य लोगों की तरह, तीन-चार दिन रहना, यह मेरे अहंकार की वृद्धि नहीं होने देता। वर्ष भर मैं इसके कारण से सेवा भाव में रहती हूं।"
वह कितना व कहां कहाँ दान करती हैं, कैसे करती हैं, वह नहीं बताना चाहती।(यह निश्चित है कि वह करोड़ों में है)
स्वयं नारायण मूर्ति को जो 68 वर्ष के हो गए हैं,को एक कार्यक्रम में 78 वर्षीय रतन टाटा के पैर छूते हुए,दो वर्ष पूर्व, सब ने देखा है।विनम्रता जब उभरती है, तो ऐसी घटनाएं सामान्य होती हैं।
क्या इतने उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद ऐसा करना संभव है?कितना कठिन है कि जिनके नोकरों के पास भी SUV कारें हों, आलीशान बंगले हैं, वह महिला सामान्य कारसेवक महिलाओं के साथ उसी तरह काम करे व 15-16साल से किसी को पता भी न चले, धन्य धन्य!
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