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A Maharaja in Warsaw महाराज दिग्विजय सिंह (जाम साहेब)

एक आर्य क्षत्रिय जामनगर के महाराज दिग्विजय सिंह (जाम साहेब) की अद्भुत महानता की गाथा , जिसे कोई बताता नही। आप गूगल करके सारी जानकारी को क्रोस चेक कर सकते है ।

आर्य क्षत्रिय राजा दिग्विजय सिंह के नाम की धूम आज भी पोलैंड देश में देखी व सुनी जा सकती है।




क्षत्रिय धर्म क्या होता है , आर्य संस्कृति क्या होती है कोई इस महान आर्य क्षत्रिय राजा से सीखे। जिसका उपकार पोलैंड जनता आज भी नही भूली। इनके नाम की कई सड़के हैं और कई योजनाएं चलती हैं पोलैंड में। और अपने देश मे ही पराये और तिरस्कृत हो गए हिन्दू क्षत्रिय योद्धा और महानायक ।

_"वसुधैव कुटुम्बकम " को चरितार्थ करने वाली एक क्षत्रिय महाराजा की गाथा पढिये और गर्व करिये वैदिक धर्म और आर्य संस्कृति पर।_

 द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण और भीषण रक्तपात मचाया तब स्त्री और बच्चो की रक्षा करने हेतु पोलैंड के सैनिको ने 500 महिलाओ और लगभग 200 बच्चों को एक बड़े समुद्री जाहज में बैठाकर समुद्र में छोड़ दिया ताकि उनका जीवन बच सके जहाज के कैप्टन से कहा गया की इन्हें किसी भी देश में ले जाओ, जहाँ इन्हें शरण मिल सके अगर जिन्दगी रही हम बचे रहे या ये बचे रहे तो दुबारा मिलेंगे।

पांच सौ शरणार्थी महिलाओ और दो सौ बच्चो से भरा वो जहाज कई देशो के पास गया जैसे ईरान के सिराफ़ बंदरगाह पहुंचा, वहां किसी को शरण क्या उतरने की अनुमति तक नही मिली, फिर सेशेल्स में भी नही मिली, यमन के बंदरगाह अदन में भी अनुमति नही मिली। *काफी दिनों समुद्र में भटकने के बाद वो जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर आया।*

*उस समय जामनगर के महाराजा “जाम साहब दिग्विजय सिंह” थे जिन्होंने भूख प्यास से बेहाल और कमजोर हो चुके उन पांच सौ महिलाओ बच्चो को अपने राज्य में शरण दी ..महाराजा ने कहा, “ मैं इस क्षेत्र का बापू हूँ और तुम मेरे राज्य में आये हो तो तुम्हारा भी बापू हूँ इसीलिए तुम्हारी हर जरुरत पूरी की जाएगी। महाराजा ने उनके लिए अपना एक राजमहल जिसे हवामहल कहते है वो रहने के लिए दिया बल्कि अपनी रियासत में बालाचढ़ी में सैनिक स्कूल में उन बच्चों की पढाई लिखाई की व्यस्था की। ये शरणार्थी जामनगर में कुल नौ साल रहे।*

*उन्ही शरणार्थी बच्चो में से एक बच्चा बाद में पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना।*

आज भी हर साल उन शरणार्थीयो के वंशज जामनगर आते है और अपने पूर्वजों को याद करते है। पोलैंड की राजधानी *"वारसा"* में कई सडकों का नाम महराजा जाम साहब के नाम पर है, उनके नाम पर पोलैंड में कई योजनायें चलती है। हर साल पोलैंड के अखबारों में महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह के बारे में आर्टिकल छपता है। *महाराजा ने अपने क्षत्रिय धर्म का पालन किया और शरणागत की रक्षा की।*

प्राचीन काल से भारत, वसुधैव कुटुम्बकम, सहिष्णुता का पाठ दुनिया को पढ़ाते आया है। हमें गर्व है महान भारत के महान आर्य संस्कृति के इतिहास पर।
Digvijay Singh not only welcomed the refugees, but also ensured that they had special accommodation, schools, medical facilities and opportunities for rest and recuperation at Balachadi, near Jamnagar. Singh also opened a camp at Chela and involved the rulers of Patiala and Baroda, with whom he had a good rapport in the Chamber of Princes, to help the refugees. Business houses like Tata and other individuals raised over Rs. 6,00,000 between 1942 -1945 (a huge amount in those days) to maintain the first batch of 500 refugees.


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