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Showing posts from September, 2020

विनम्रता जब उभरती है, अहम लुप्त होता है....तो महान व्यक्तित्व उभरता है!!

विनम्रता जब उभरती है, अहम लुप्त होता है....तो महान व्यक्तित्व उभरता है!! 2 दिन पूर्व ट्विटर पर इंफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति की सब्जियां बेचते हुए फोटो वायरल हो गई। बाद में पड़ताल हुई तो पता चला कि वास्तव में फोटो सुधा मूर्ति की ही है, जो 2480 करोड रुपए की मालकिन है। "किंतु वे सब्जीयां क्यों बेच रही हैं?" तो उसका उत्तर मिला "वह राघवेंद्र मठ (मंदिर) में प्रति वर्ष 3 दिन के लिए आती हैं,चुपचाप। वहां पर फल सब्जी काटना, व्यवस्थित करना, रसोई के काम में लगना, यह सब काम करती हैं, स्वयं अपने हाथ से। जब उनसे पूछा गया "यह क्या है, आप क्यों ऐसा करती हैं?" तो उन्होंने कहा "यह अपने अहम को मारने की एक विधि है, जो मैंने पंजाब में गुरुद्वारे में होने वाली कार सेवा को देखकर सीखी है। पैसों का दान देना भी अच्छी बात है,किंतु स्वयं शारीरिक श्रम करना व सामान्य लोगों के साथ,सामान्य लोगों की तरह, तीन-चार दिन रहना, यह मेरे अहंकार की वृद्धि नहीं होने देता। वर्ष भर मैं इसके कारण से सेवा भाव में रहती हूं।" वह कितना व कहां कहाँ दान करती हैं, कैसे करती हैं, वह

Rojgar samachar 23 September 2020

 

Rojgar samachar 16 September 2020

 Rojgar samachar 16 September 2020

5 सितम्बर / आदर्श शिक्षक डॉ. राधाकृष्णन

दर्शनशास्त्री, अध्यापक एवं राजनेता डॉ. राधाकृष्णन का जन्म पांच सितम्बर 1888 को ग्राम प्रागानाडु (जिला चित्तूर, तमिलनाडु) में हुआ था. इनके पिता वीरस्वामी एक आदर्श शिक्षक तथा पुरोहित थे. अतः इनके मन में बचपन से ही हिन्दू धर्म एवं दर्शन के प्रति रुचि जाग्रत हो गयी. उनकी सारी शिक्षा तिरुपति, बंगलौर और चेन्नई के ईसाई विद्यालयों में ही हुई. उन्होंने सदा सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण कीं. 1909 में दर्शनशास्त्र में एम.ए कर वे चेन्नई के प्रेसिडेन्सी कॉलेज में प्राध्यापक नियुक्त हुए. 1918 में अपनी योग्यता के कारण केवल 30 वर्ष की अवस्था में वे मैसूर विश्वविद्यालय में आचार्य बना दिये गये. 1921 में कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति के आग्रह पर इन्हें मैसूर के किंग जार्ज महाविद्यालय में नैतिक दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक पद पर नियुक्त किया गया. 1926 में डॉ. राधाकृष्णन ने विश्वविख्यात हार्वर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित दर्शनशास्त्र सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया. उस प्रवास में अन्य अनेक स्थानों पर भी उनके व्याख्यान हुए. उन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म, परम्परा एवं द